गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

चन्द माहिया : क़िस्त 29



:1:
दीवार उठाते हो
 तनहा जब होते
फिर क्यूँ घबराते हो 

:2:

इतना भी सताना क्या
दम ही निकल जाए
फिर बाद में आना क्या

:3;

ये हुस्न की रानाई
तड़पेगी यूं ही
गर हो न पज़ीराई

:4:

दुनिया के सारे ग़म
इश्क़ में ढल जाए
बदलेगा तब मौसम

;5;

क्या हाल बताना है
तेरे फ़साने में 
मेरा भी फ़साना है 


-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ

रानाई = सौन्दर्य
पज़ीराई= प्रशंसा
[सं 13-06-18]

5 टिप्‍पणियां:

Rajendra kumar ने कहा…

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (19.02.2016) को वैकल्पिक चर्चा मंच अंक-3)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

Rajendra kumar ने कहा…

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (19.02.2016) को "सफर रुक सकता नहीं " (चर्चा अंक-2257)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

कृपया,पहली सूचना को अनदेखा करें।

आनन्द पाठक ने कहा…

dhanyavaad aap ka
-anand.pathak

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति.....बहुत बहुत बधाई.....

आनन्द पाठक ने कहा…

आ0 चतुर्वेदी जी

सराहना हेतु आप का बहुत बहुत धन्यवाद
सादर
आनन्द.पाठक