शनिवार, 24 जनवरी 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 14



1:
कहने को याराना
वक़्त ज़रूरत, वो
हो जाता बेगाना


:2:
दिल में जो लगी हो लौ
आना चाहो तो
आने की राहें सौ

:3:
रह-ए-इश्क़ में हूँ गाफ़िल
दुनिया कहती है
मंज़िल यह ला-हासिल

:4;
इस दिल को तसल्ली है
 क़ायम है अब भी
तेरी जो तजल्ली है

:5;

जुल्फ़ों को सुलझा लो
या तो इन्हें बाँधो
या मुझको उलझा लो


[तजल्ली =ज्योति.नूर-ए-हक़]


-आनन्द.पाठक

[सं 10-06-18]

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